अपरिचित
वह
वहां मिला
जहाँ मिलती है गली
सड़क से
अपने स्वाभाविक संकोच के साथ
अपरिचित
अभाव में
किसी विकल्प के ............
तुम
वहाँ मिले
जहाँ मिलती है गली
सड़क से
अपने स्वाभाविक संकोच के साथ
अभाव में
किसी विकल्प के .........
मैं
वहाँ मिला
जहाँ मिलती है गली
सड़क से
अपने स्वाभाविक संकोच के साथ
अभाव में
किसी विकल्प के ........
हम
वहाँ मिले
जहाँ मिलती है गली
सड़क से
अपने स्वाभाविक संकोच के साथ
अभाव में
किसी संकल्प के .......
अपरिचित हैं फिलहाल।
Thursday, November 13, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
बहुत अच्छे अधीर भाई ! मुझे अच्छा लगा आपका ये पहला काव्यात्मक कारनामा !
अधीर जी ब्लॉग शुरू करने की बधाई!
आपकी कविता अच्छी है !
मेरी कविताएं शिरीष जी के अनुनाद पर पढ़ सकते हैं।
मैंने भी एक ब्लॉग शिरीष जी की प्रेरणा से आरम्भ किया था पर वह चल नहीं पाया।
हिंदी में कई ब्नाग हैं जो महत्वपूर्ण हैं और मुझे अपने ब्लाग के बारे में यही लगा कि बरगदों के साये में पौधे नहीं पनपते!
Post a Comment